हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर ऐतिहासिक भौतिकवाद पर कुछ सामग्री एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने यहां ‘सामाजिक चेतना के कार्य और रूप’ के अंतर्गत सामाजिक चेतना के रूप में नैतिकता पर चर्चा की थी, इस बार हम आर्थिक चेतना को समझने की कोशिश करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस शृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
आर्थिक चेतना
( Economic Consciousness )
मानव समाज की उत्पत्ति के समय से ही लोग भौतिक उत्पादन (material production) तथा आर्थिक क्रियाकलाप से संबंधित ज्ञान का संचयन (accumulation), विकास तथा परिष्करण (perfecting) करते आ रहे हैं। यह ज्ञान, भौतिक संपदा (wealth) का उत्पादन तथा वितरण करने की प्रक्रिया के सबसे महत्वपूर्ण पहलू को परावर्तित करता है और उत्पादन तथा आर्थिक क्रियाकलाप के संगठन व प्रबंध में लागू किया जाता है, सामाजिक चेतना का एक विशेष रूप, यानी आर्थिक चेतना है। वर्ग समाज (class society) में यह चेतना एक सुस्पष्ट वर्गीय स्वरूप (class character) को व्यक्त करती है और वैचारिक संघर्ष तथा क़ानूनी, राजनीतिक और नैतिक चेतना के साथ अविच्छेद्य (inextricably) रूप से जुड़ी होती है।
समाजवादी समाज में आर्थिक चेतना का स्वरूप नितांत भिन्न होता है। सामाजिक चेतना के अन्य रूपों की ही तरह यह भी सामाजिक सत्व (social being) तथा उसमें होने वाले परिवर्तनों को परावर्तित (reflect) करती है। इसके अलावा, समाजवादी आर्थिक चेतना मुख्य रूप से समाजवादी अर्थव्यवस्था और उसके संगठन व प्रबंध के रूपों के विकास के प्रतिमानों (patterns) का एक परावर्तन तथा बोध है। क्योंकि मनुष्य, मेहनतकश लोग समाज की मुख्य उत्पादक शक्ति हैं, इसलिए उनकी आर्थिक चेतना का चौतरफ़ा विकास सारी उत्पादक शक्तियों के विकास में एक सबल कारक है।
समसामयिक समाजवादी समाजों की अर्थव्यवस्था की संरचना अत्यंत जटिल है। समाज के वास्ते अधिकांश उत्पादों का उत्पादन करने वाले राजकीय उद्यमों (enterprises) के अलावा सहकारी उद्यम और व्यक्तिगत स्वरोज़गार का अस्तित्व भी है। इनके अतिरिक्त देशी तथा विदेशी फर्मों द्वारा स्थापित मिश्रित उद्यम भी हैं। आर्थिक समीचीनता कि सबसे महत्वपूर्ण कसौटी उद्यम की लाभप्रदता, शीघ्रता से पुनर्गठित (reorganise) होने, विज्ञान व तकनीकि की नवीनतम उपलब्धियों को काम में लाने और श्रम की उत्पादकता को लगातार बढ़ाने तथा संसाधनों की बचत करने वाली ऐसी आधुनिकतम विज्ञान-सघन टेक्नोलॉजी का समावेश करने की उसकी क्षमता है, जिससे ऐसे उत्पादों व वस्तुओं का उत्पादन करना संभव हो जाता है, जो सर्वाधिक विविधतापूर्ण आवश्यकताओं और मांगों को संतुष्ट करना संभव बनाती है। आर्थिक कार्य, अलग-अलग उद्यमों, फ़र्मों, एसोशियेशनों और पूरे उद्योगों के प्रबंध तथा विकास के कामों का निर्णय, चंद व्यापारियों व प्रबंधकों की बजाय सारे मेहनतकशों द्वारा किया जाता है और समाजवादी जनवाद के आधार पर निबटाया जाता है। यहां प्रत्येक की प्रभावशालिता तथा महत्व, शेयरों के स्वामित्व से नहीं, बल्कि उसके अमुभव, ज्ञान तथा श्रम क्रियाकलाप में उसके योगदान से निर्धारित होते हैं।
इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम