हे मानवश्रेष्ठों,
समाज और प्रकृति के बीच की अंतर्क्रिया, संबंधों को समझने की कोशिशों के लिए यहां पर प्रकृति और समाज पर एक छोटी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति पर चर्चा की थी, इस बार हम वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और समाज की संरचना के अंतर्गत उसके परिणामों पर बात शुरू करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम – १
( scientific and technological progress and its consequences – 1 )
अब वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की सामान्य विशेषताओं व लक्षणॊं से परिचित होने के बाद हम पूछ सकते हैं कि क्या प्रकृति और समाज की अंतर्क्रिया ( interaction ), समसामयिक ( contemporary ) वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति पर निर्भर करती है और अगर ऐसा है, तो किस हद तक, और इसके परिणाम तथा नतीज़ों को सामाजिक-आर्थिक प्रणाली ( socio-economic system ) किस तरह निश्चित करती है?
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की वज़ह से उत्पादक शक्तियों ( productive forces ) का तूफ़ानी विकास मनुष्य की शक्ति में बढ़ती कर रहा है। किंतु इस शक्ति का किस तरह से उपयोग हो रहा है? किसके लिए हो रहा है? मनुष्य की लगातार बढ़ती हुई शक्ति से कौन लाभ उठा रहा है? इस विचार-विमर्श को अधिक सारवान बनाने के लिए हमें इस प्रगति की मुख्य दशा-दिशाओं पर दृष्टिपात करना चाहिए।
(१) हम इसकी चर्चा कर चुके हैं कि किस तरह एक विशेष तकनीक, सूचना तकनीक, वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति की समसामयिक अवस्था पर उत्पादन तथा प्रबंध के कार्यकलाप के उत्प्रेरक की निर्धारक भूमिका अदा करती है। अब मानवजाति ऐसे सुपर कंप्यूटर बनाने की क्षमता से संपन्न है जो दसियों अरब संक्रियाएं प्रति सेकंड कर सकते हैं और उनकी स्मृति दसियों लाखों पुस्तकों में विद्यमान सूचना के बराबर जानकारी का भंडारण करने में समर्थ है और उनका आकार भी निरंतर कमतर होता जा रहा है।
आज कृत्रिम मस्तिष्क की रचना करने का काम जारी है। कृत्रिम मस्तिष्क युक्त कंप्यूटर अत्यंत जटिल तार्किक युक्तियां ( logical arguments ) संपन्न करने में समर्थ होंगे और उनकी मदद से वैज्ञानिक अनुसंधान, मशीनों की डिज़ाइनिंग तथा उद्यमों तक की डिज़ाइनिंग करना संभव हो सकेगा। वे लचीली ( flexible ) तकनीकों का नियंत्रण करने में समर्थ होंगे। और शायद व्यक्तिगत कंप्यूटरों की मदद से आधुनिक घरेलू उत्पादन इकाइयां बनाना, श्रम की उत्पादकता में तीव्र बढ़ती करना और शिक्षण के स्वरूप को बदलना संभव हो सकेगा। बच्चों और वयस्कों को नयी सूचना को दसियों गुना अधिक तेज़ी से आत्मसात करने का अवसर मिल सकता है, केवल विशेषज्ञों को उपलब्ध ज्ञान करोड़ों लोगों के लिए सुलभ किया जा सकता है। लोगों की जीवन पद्धति और पारस्परिक संसर्ग बदल जायेंगे और भाषा की बाधाएं भंग हो जायेंगी। कोशिश की जा रही हैं कि कंप्यूटर वैज्ञानिक साहित्य और दस्तावेज़ों को एक भाषा से दूसरी में क़रीब-क़रीब मनुष्य की सहायता के बिना ही अनूदित कर लेंगे। मनुष्य की भाषा को समझने में तथा रंगों व त्रि-आयामी दृश्य को देखने में समर्थ नयी पीढ़ी के रोबोटों का विकास जारी है। इस सबके क्या परिणाम होंगे?
पूंजीवादी समाज में, यहां तक कि विकसित देशों में भी ऐसे लोगों की विशाल संख्या है जो वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन क्रियाकलाप के बाहर कर दिये गये हैं। कुछः नये रोज़गार उत्पन्न होने के बावजूद रोबोटीकरण तथा कंप्यूटरीकरण के कारण बननेवाली बेरोज़गारों की फ़ौज लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी वज़ह यह है कि पूंजीवादी उद्यम, सूचना तकनीक को मुख्यतः मुनाफ़े कमाने का तरीक़ा समझते हैं। फलतः इस तकनीक के फैलाव के नकारात्मक परिणाम स्वयं कंप्यूटरों तथा रोबोटों के अनुप्रयोग ( application ) नहीं, बल्कि उनके पूंजीवादी उपयोग के दुष्परिणाम हैं। अतएव ज़रूरत इस बात की है कि इस वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के लक्ष्य को सर्वथा भिन्न बनाया जाये। इसका उपयोग मुनाफ़ा कमाने के अधीन नहीं, बल्कि मनुष्य और समाज के हित में नियोजित ( planned ) किया जाये। समाजवादी ढांचे के अंतर्गत नयी तकनीकों के विकास की योजनाएं इस तरह से बनायी जायें कि सारी श्रम समर्थ आबादी सामाजिक दृष्टि से उपयोगी काम करती रहे।
इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम
जुलाई 24, 2016 @ 18:08:35
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