यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार यहां सामान्य मनोविज्ञान की संकल्पना पर एक संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया गया था। इस बार समकालीन मनोविज्ञान द्वारा प्रयोग में ली जाने वाली शोध प्रणालियों पर हम थोड़ा-सा विस्तार से चर्चा करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
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प्रत्ययवादी ( idealistic ) मनोविज्ञान मनुष्य की “आत्मा” में पैठने के लिए जो एकमात्र प्रणाली सुझा सका, वह आत्मावलोकन ( अथवा अंतर्निरीक्षण, अंतर्दृष्टि ) की प्रणाली थी। चूंकि वह “आत्मा” ( मन, चेतना ) की एक बंद अंतर्जगत, एक विशिष्ट आध्यात्मिक तत्व के रूप में, जो मानो बाह्य विश्व से नहीं जुड़ा हुआ है, कल्पना करता है, अतः आत्मावलोकन की प्रणाली उसके लिए एक स्वाभाविक परिणति थी। प्रत्ययवादी दार्शनिक कहते थे कि मानसिक परिघटनाओं का संज्ञान केवल आत्मावलोकन के जरिए ही किया जा सकता है। किंतु यह विश्वास उतना ही भ्रामक है, जितना अभौतिक आत्मा में विश्वास, जिस पर मानो प्रकृति के नियम लागू नहीं होते। केवल आत्मावलोकन द्वारा प्राप्त जानकारी वैज्ञानिक दृष्टि से प्रामाणिक नहीं है, चाहे यह विशेषतः प्रशिक्षित मनोविज्ञानियों द्वारा ही क्यों ना किया गया हो। शिक्षित वयस्क द्वारा आत्मावलोकन के द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर शिशु अथवा पशु के मानस की व्याख्या तो और भी अमान्य है। किंतु ऐसे प्रयत्न अत्यंत समर्पित अंतर्दर्शी मनोविज्ञानियों द्वारा किये गये थे, जिन्होंने पूरी गंभीरता के साथ अपने को पशुओं के स्थान पर रखा और फिर अपनी मानव-चेतना के गुणों के अनुसार ही पशुओं की चेतना की प्रतिकृति की।
अंतर्निरीक्षण की प्रणाली के विलोमतः, मन की द्वंदात्मक वस्तुपरक प्रणाली, मन का वस्तुपरक अध्ययन करती है, अनुसंधान में आत्मपरकता के लिए कोई गुंजाईश नहीं छोड़ती और अन्य प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों जैसी ही वस्तुपरक पद्धतियां अपनाये जाने का मार्ग प्रशस्त करती है। यह प्रणाली, वैज्ञानिक मनोविज्ञान में स्वीकृत चेतना तथा सक्रियता की एकता के नियम पर आधारित है।
मन के वस्तुपरक अध्ययन में मानसिक परिघटनाओं की उत्पत्ति तथा अभिव्यक्ति की वस्तुपरक परिस्थितियों की जांच शामिल है। अनुसंधान का वस्तुपरक सिद्धांत, अंतर्मुखी ध्यान द्वारा मानसिक परिघटनाओं के सीधे अवबोधन की प्रणाली नही, अपितु व्यवहित संज्ञान का रास्ता ( अर्थात सक्रियता में मानसिक परिघटनाओं की वस्तुपरक अभिव्यक्तियों के विश्लेषण के जरिए अनुसंधान ) है। सही रूप से अनुमानित परिस्थितियों में संपन्न मानव-सक्रियता का अध्ययन करके हम मानसिक प्रक्रियाओं के बारे में ठोस निष्कर्षों पर पहुंच सकते हैं। उल्लेखनीय है कि अध्येता द्वारा अपनी मानसिक प्रक्रियाओं का वस्तुपरक अध्ययन भी असल में उन्हीं व्यवहित प्रणालियों से किया जाता है, जिनसे वह दूसरे व्यक्तियों की मानसिक प्रक्रियाओं को जांचता और आंकता है।
सभी प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों की भांति ही मनोविज्ञान में भी आगे विश्लेषण का विषय बननेवाली सामग्री के संग्रह की दो प्रणालियां हैं : प्रेक्षण और प्रयोग। ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में वैज्ञानिक संज्ञान के इन उपकरणों का इस्तेमाल संदेहातीत है। प्रत्ययवादी मनोविज्ञान प्रेक्षण और आत्मावलोकन ( अंतर्निरीक्षण ) में भेद नहीं करता था और मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में, विशेषतः उच्चतर मानसिक प्रक्रियाओं के अनुसंधान में प्रयोग को तनिक भी महत्वपूर्ण नहीं मानता था।
प्रेक्षण मानसिक अनुसंधान की प्रणाली तभी बन सकता है, जब वह बाह्य परिघटनाओं के वर्णन तक ही सीमित न रहे, बल्कि उनके मनोवैज्ञानिक स्वरूप की व्याख्या भी करे। वैज्ञानिक प्रेक्षण का उद्देश्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों को दर्ज़ करना ही नहीं, उनके कारणों को प्रकाश में लाना, यानि उनकी वैज्ञानिक व्याख्या करना भी है। इसके विपरीत तथाकथित रोज़मर्रा के प्रेक्षण, जो मनुष्यों के सांसारिक अनुभवों की बुनियाद होते हैं और अन्य लोगों के कार्यों तथा व्यवहार के कारणों को जानने के उसके प्रयत्नों के परिचायक हैं, व्यष्टिक तथ्यों को दर्ज़ करने से संबंध रखते हैं।
रोज़मर्रा के प्रेक्षण अपने यादृच्छिक स्वरूप, स्वतःस्फूर्तता और विश्रृंखलता के कारण वैज्ञानिक प्रेक्षणों से भिन्न होते हैं। वे मानसिक प्रक्रियाओं की उत्पत्ति तथा विकास से संबंधित सभी बुनियादी परिस्थितियों को विरले ही ध्यान में रख पाते हैं। फिर भी रोज़मर्रा के प्रेक्षण चूंकि अनगिनत और सरासर व्यवहारिक होते हैं, इसलिए कभी-कभी वे गहन मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि की मिसालें भी पेश करते हैं और मनोविज्ञानियों के लिए बड़ी मूल्यवान कहावतों और उक्तियों का रूप धारण कर लेते हैं। रोज़मर्रा के प्रेक्षण से भिन्न वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक प्रेक्षण का सारतत्व, व्यवहार अथवा सक्रियता से संबंधित प्रेक्षणाधीन तथ्यों के वर्णन से उनके मनोवैज्ञानिक मर्म की व्याख्या में संक्रमण है। यह संक्रमण प्राक्कल्पना का रूप ले लेता है, जो प्रेक्षण के दौरान पैदा होती है। ऐसी प्राक्कल्पना का सत्यापन अथवा खंडन बाद के प्रेक्षणों का विषय होता है। यह आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक प्रेक्षण एक स्पष्ट योजना पर आधारित हो।
वस्तुपरक वैज्ञानिक अनुसंधान और नये मनोवैज्ञानिक तथ्यों के संग्रहण की मुख्य विधि प्रयोग है। प्रेक्षण के विपरीत प्रयोग मनुष्य की सक्रियता में अध्येता के सक्रिय हस्तक्षेप की संभावना प्रदान करता है। अध्येता ऐसी परिस्थितियां पैदा करता है, जिनमें मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्पष्टतः उद्घाटित किया जा सके, आवश्यक दिशा में बदला जा सके अथवा सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप से जांच के लिए बारंबार पुनर्प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रयोगात्मक प्रणाली को प्रयोगशालीय अथवा प्राकृतिक प्रयोग के रूप में लागू किया जा सकता है।
प्रयोगशाला-प्रयोग की विशेषता यह नहीं है कि वह विशेष मनोवैज्ञानिक उपकरणों की मदद से प्रयोगशाला की परिस्थितियों में किया जाता है और जिस व्यक्ति पर प्रयोग किया जा रहा है, वह विशेष निर्देशों के अनुसार क्रियाएं करता है। प्रयोगशालीय प्रयोग की विशेषता यह भी है कि प्रयोगाधीन व्यक्ति को अपने प्रयोगाधीन होने की बात पूरी तरह से मालूम होती है ( हालांकि सामान्यतयाः उसे प्रयोग के उद्देश्य और अनुसंधान के लक्ष्य की जानकारी नहीं होती )। ये प्रयोग ध्यान, प्रत्यक्ष, स्मृति, आदि के गुणों को सामने लाने में सहायक होते हैं।
प्राकृतिक प्रयोग की प्रणाली का उद्देश्य प्रयोगाधीन व्यक्ति को अपने प्रयोगाधीन होने के ज्ञान से उत्पन्न तनाव से मुक्त रखना और अनुसंधान के लिए सामान्य, जानी-पहचानी परिस्थितियां ( पाठ, बातचीत, खेल, होमवर्क आदि ) मुहैया कराना है।
मनोवैज्ञानिक तकनीकें अनुसंधान में ही नहीं, परीक्षण के उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती हैं। इस मामले में लक्ष्य वैज्ञानिक ज्ञान को गहनतर बनाने के लिए आवश्यक नयी जानकारी प्राप्त करना नहीं, वरन यह मालूम करना होता है कि किसी व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक विशेषताएं, प्रचलित मनोवैज्ञानिक मानकों और मापदंडों से कहां तक मेल खाती हैं। अनुसंधानकर्ता जिन प्रणालियों से व्यक्ति की निश्चित मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को मालूम करने का यत्न करता है, वे प्रणालियां परीक्षण कहलाती हैं।
मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक समाधान के लिए उपयुक्त अनुसंधान तकनीकों का उपयोग आवश्यक है। मनोवैज्ञानिक अध्ययन की वस्तुपरक प्रणालियों के व्यापक उपयोग के बिना आज मनोविज्ञान के क्षेत्र में उच्चस्तरीय अनुसंधान नहीं किये जा सकते।
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इस बार इतना ही।
शुक्रिया।